चोटी की पकड़–75
यूसुफ के पीछे तीन आदमी लगाए गए। होटल में यूसुफ ने कलकत्ते के एक मित्र का पता लिखाया था। रात को प्रभाकर अपने मित्रों की तलाश में बाजार में गए। पालकी के अंदर बैठे रहे। पालकी के दरवाजे बंद। दिलावर ने साथियों के साथ यूसुफ का पता ला
"हाँ, लेकिन यह अगर कहकर आया होगा तो सब-का-सब गुड़-गोबर हो जाएगा। बड़ा नीचा देखना होगा। वह इसी का नाम बतलाएगा, या नहीं मिलेगा। यह सरकारी आदमी है, वह भी होगा। इस तरह न बनेगा। अभी आप कच्चे हैं, बाबू। हम होटलवाले से कह आए हैं, कल वह इनसे इनके एक रिश्तेदार का नाम पूछेगा, अपने मन से पूछेगा, जैसे साले का नाम या मामू का या मौसी का। इन्हें जवाब देना होगा, अगर जवाब न दिया तो कहा जाएगा कि ये राजा के सिपुर्द किए जाएंगे। ये गलत नाम बतलाएँगे। इस तरह यहीं गवाही पक्की हो जाएगी। फिर कलकत्ते का हाल हम मालूम कर लेंगे। राजा भी सरकार के हैं। अगर इन्होंने बात न मानी तो इनसे इत
दिलावर की बातों से प्रभाकर को खुशी हुई। सिर झुका लिया। कहा, "आप लोगों से बहुत सीखना बाकी है।" मन में कहा, "काम उस तरह भी पक्का था, झूठ से कहाँ बचाव है?"
"बाबू, आपकी शराफत के हम क़ायल हो गए। आप हमें अपने आदमी मालूम होते हैं। हमीं आपके साथ रहेंगे। छोटी-सी तनख्वाह में ऐसी गिरह लगानी पड़ती है, नहीं तो लोग बिना शहद लगाए राजा को चाट जाए। अब आप आराम कीजिए।"
प्रभाकर लेटे। रात का तीसरा पहर बीत रहा था।
सबेरे होटलवाले ने यूसुफ से एक रिश्तेदार का नाम पूछा। यूसुफ चौकन्ने हुए। मगर मामला तूल पकड़ जाएगा सोचकर अपने रिश्तेदार का नाम बतलाया। होटलवाले ने यूसुफ के दस्तखत कराए। यूसुफ ने बिगाड़कर दस्तखत कर दिए। फिर कलकत्तेवाले जहाज़ के लिए रवाना हुए। खबर लेकर उनके पीछे तीन आदमी लगे। बहुत से यात्री थे। उन्हें मालूम नहीं हो सका, कौन उनकी गरदन नाप रहा है।
कलकत्ते में उतरने के साथ उन्होंने अपने नाम के साथ जो पता लिखा था, उस पर पहुँचने के लिए एक आदमी तीर की तरह छूटा। पहले दरजे की बग्घी किराए की की और जल्द चलने के लिए कहा। उसके दो साथी, रास्ते पर यूसूफ को तीसरे दरजे की टूटी बग्घी ठहराते हुए देखकर, पूछताछ करने लगे, "कहाँ जाना है-जनाब कहाँ से तशरीफ ले आए?" मतलब जवाब लेना नहीं, रोके रहना था। यूसुफ सस्ते भाव चढ़ना चाहते थे, जल्दबाजी नहीं की। एक बग्घीवाले से तै न हुमा, दूसरे के पास चले।